Sunday, March 18, 2012

Shubham reminded me of a ghazal by Attaullah Khan...

क्यों तू अच्छा लगता है, वक़्त मिला तो सोचेंगे,
तुझ में क्या क्या दिखता है, वक़्त मिला तो सोचेंगे.
सारा शहर शनासाई का, दावेदार तो है लेकिन,
कौन हमारा अपना है, वक़्त मिला तो सोचेंगे.
हम ने उसको लिखा था, कुछ मिलने की तदबीर करो.
उसने लिख कर भेजा है, वक़्त मिला तो सोचेंगे.
मौसम, खुशबू, बाद-ए-सबा, चाँद, शफक और तारों में,
कौन तुम्हारे जैसा है, वक़्त मिला तो सोचेंगे.
या तो अपने दिल की मानो, या फिर दुनियावालों की.
मशवरा उसका अच्छा है, वक़्त मिला तो सोचेंगे.